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चुभन – छटा और अंतिम भाग

मेरी आवाज़
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यह स्लिप राकेश नें ही दी थी और लिखा था……
” मुझे माफ़ कर देना नलिनी ,आभारी हूँ तुम्हारा की तुमने मुझे अच्छे प्यार की परिभाषा समझा कर मेरी जिन्दगी में एक नयापन ला दिया और मैं नए सिरे से प्यार के उस रूप की कल्पना करने लगा जिसको मैंने पहले कभी महसूस ही न किया था | अपनेपन के अहसास नें मेरा जीवन , सोच समझ सब बदल दिया था और अब मैं तुम्हें जिंदगी भर की खुशियां देना चाहता था , हर पल तुम्हारे साथ जी लेना चाहता था | मैं भी चाहता था , अपना छोटा सा खुशहाल परिवार , प्यारा सा घर और ढेर सारी खुशियाँ , नन्ही किलकारियों को सुनाने की हसरत मेरे मन में भी पनपने लगी थी , लेकिन जब तक मैं अपना यह सपना पूरा कर पाता तब तक बहुत देर हो चकी थी ।मुझे अचानक से पता चला कि मैं एच .आई.वी पाज़िटिव हूं । मैनें तुम्हारे और बच्चों के अस्पताल में बिना तुम्हें बताए सभी टैस्ट करवाए हैं , शुक्र है तुम तीनों पर इसका कोई प्रभाव नहीं है । मैनें बच्चों के नाम हम दोनों के नाम पर ही रिंकु और नीलु रखे हैं ।मैं नहीं चाहता कि मेरी परछाई भी इन मासूम बच्चों पर पडे । इसलिए मैं सब छोड-छाड कर जा रहा हूं , कहां ? मैं खुद नहीं जानता ।मैनें अपनी सारी प्रापर्टी बच्चों के नाम कर दी है और तुम पर पूरा भरोसा है कि तुम बच्चों की परवरिश अच्छे से करोगी । मैं अपने किए पर शर्मिन्दा हूँ , इस काबिल तो नहीं कि तुमसे माफी भी मांग सकूं फिर भी हो सके तो मुझे माफ़ कर देना | ”
तुम्हारा
राकेश

यह पढकर अभी मैं इससे पहले कुछ सोच पाती कि चाय की ट्रे के साथ पडे अखबार पर नज़र पडी
राकेश कंस्ट्रक्शन कंपनी के मालिक की कार दुर्घटना में मौत…….।
उस दिन मुझ पर क्या गुजरी होगी , वो शब्दों में बता ही नहीं सकती । पता नहीं जिदगी मुझसे बार-बार इम्तिहान क्यों ले रही थी । क्यों मैं हर बार हार कर भी जीने पर मजबूर थी ? पहली बार राकेश नें जीने पर मजबूर किया तो अब की बार उस के बच्चों नें । मैं इतनी नासमझ तो नहीं थी , मुझे समझने में राकेश नें भी बहुत बड़ी भूल की थी , क्या मैं उसे अपनी भावनाओं का संबल न देती | काश ! उसनें नकारात्मक सोच न अपनाई होती तो मेरे बच्चों के सर पर आज भी बाप का साया होता और मुझे वैधव्य जीवन जीने को मजबूर न होना पड़ता | काश राकेश नें समझा होता कि वह भी एक आम इंसान की तरह जी सकता है , काश उसनें अपनी तकलीफ मुझसे बांटी होती तो हमारा जीवन आज कुछ और होता , पर अब यह सब बातें बस सोचने के लिए ही रह गयी थी , जो हर पल मुझे चुभती रहती हैं और मैं कुछ नहीं कर पाती |बस तब से मैंने अपनी जिंदगी का मकस्द बना लिया कि मैं एडस के प्रति जागरूक्ता अभियान चलाऊंगी । अपने सीने में दफ़न उस चुभन का अहसास मैं कभी कम न होने दूंगी । यही है मेरे अधूरे प्यार की चुभन को मेरी सच्ची श्रधांजलि ।

समाप्त

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