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औरत किसकी दुश्मन…..?

मेरी आवाज़
मेरी आवाज़
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मै अभी घर छोडकर चली जाऊँगी |मन तो करता है जाकर किसी नदी में डूब मरूँ या फिर किसी ट्रेन के नीचे कटकर मर जाऊँ और कुत्तों का निवाला बन जाऊँ , मुझे कोई दुख न होगा |यह रोज की खिच-पिच अब मुझसे नही सही जाती (सिसकने की आवाज )
नहीं , तुम ऐसा नहीं कर सकती …..?
सिसकने की आवाज़ और तेज हो गई | मुझसे रहा न गया |सुबह-सुबह की भाग-दौड काम पर जाने की और उससे पहले घर का काम निपटाने की जलदी भी मुझे रोक न सकी और मेरे कदम न चाहते हुए भी रसोई घर की तरफ अनायास ही बढने लगे |खिडकी के बाहर अब भी दर्द भरी सिसकियां सुनाई दे रही थीं |मैने खिडकी खोल कर देखा |
शारदा (मेरी काम वाली बाई ) किसी औरत के आँसू पोंछ रही थी | मैने उसे पहले कभी न देखा था |
शारदा के साथ देखकर मुझसे पूछे बिना रहा न गया |
शारदा ने मेरी तरफ देखा लेकिन बोली कुछ नही | मुझे उसके देखने से ऐसा लगा मानो मैने कोई अपराध कर दिया हो |
मन में ग्लानि भी हुई , फिर भी किसी के आँसु देखकर मै कैसे चुप रह जाती और जिस तरह शारदा ने मुझे देखा था मुझे लगा शायद उसके रोने का कारण मै ही हूँ | मुझे काम पर जाने में देरी भी हो रही थी , फिर भी मेरे लिए शायद यह काम उस समय सबसे जरूरी था |
अब तक उसने अपने आँसु पोछ दिए थे |मैने एक बार फिर से कारण जानने का दुस्स्साहस कर ही लिया |
परिणाम फिर वही , अब की बार शारदा ने भावहीन नजरों से मुझे देखा और फिर उससे कुछ बतियाने लगी |शायद तमिल या तेलगु में | शारदा मेरी यह कमजोरी अच्छी तरह जानती है कि मै दक्षिण भारतीय भाषाएं नहीं जानती | दोनों ने आपस में बात की और वो वहां से चली गई |
उनकी बातें भले ही मै न समझ पाई , लेकिन अंदाज से तो स्पष्ट था ही कि (जो मेरे खिडकी खोलने से पहले हिन्दी में बतिया रही थीं वो अचानक तमिल/तेलगु मे बतियाने लगी )वो मुझसे कुछ छुपाना चाहती हैं | इतने में मुझे मेरे पतिदेव ने आवाज लगाई तो मुझे अपने काम का आभास हुआ | शारदा को जलदी से अंदर बुलाया और फिर से जुट गई अपने काम में | तब तो इतनी जलदी थी कि मै फिर शारदा से उस बारे में बात न कर पाई | घर का काम निपटा अपने काम पर चली गई |लेकिन वो सिसकियां पूरा दिन रह रह कर याद आती रहीं |उस दिन अजीब सी थकावट और नीरसता सी महसूस की मैने | काम तो रोज ही होता था लेकिन इतनी अरोचकता कभी नही थी |उस रात मै चैन से सो भी नही पाई | अगले दिन छुट्टी का दिन था |छुट्टी के दिन शारदा भी काम पर थोडी देरी से ही आती है |मै भी शारदा के आने पर आराम से ही उठती हूँ , लेकिन उस दिन रात भर की बेचैनी ,और दिलो-दिमाग मे गूँजती सिसकियां ,मै शारदा का इन्तजार करने लगी |शारदा आई और अपने काम में लग गई |
मैने एक बार फिर से कारण जानने के लिए बात छेडी
वो कल तुम्हारे साथ कौन थी ?
फ्रैन्ड है मैडम……
क्या नाम है उसका ?
कविता……
अच्छा ! वो भी काम करती है ?
हां मैडम……
कहां रहती है ?
स्लम एरिया में…….
शारदा बस उतना ही जवाब देती जितना मै उससे पूछती , वो भी अनमने मन से | शायद वो मेरे अंदर की बात समझ चुकी थी कि मै जानना क्या चाहती हूँ |जवाब देना शायद उसकी मजबूरी थी |
अच्छा ! कल वो रो क्यों रही थी ?( अब मैने सीधा ही प्रश्न किया )
क्या रो रही थी , किसी के घर का मामला है ..| (शारदा ने इस अंदाज में मुझे जताया कि मुझे किसी के व्यक्तिगत मामाले में टांग अडाने का कोई अधिकार नहीं है , शारदा के इस तरह बोलने पर मुझे थोडा गुस्सा तो आया लेकिन बात तो उसने भी सच्ची कही थी )
अकसर यही होता है न कि जिस बात का हमें जवाब नही मिलता या फिर जिस जवाब से हम संतुष्ट नही होते उसके लिए जिज्ञासा और बढती जाती है | मेरी जिज्ञासा उत्तर पाकर भी शान्त न हुई थी | शारदा अपने काम में व्यस्त और मै अपनी सोच में |
मैने चाय बनाई |एक प्याली शारदा को देते हुए मैने फिर से कविता की बात छेड ही दी | मुझे अब की बार लगा था कि शायद मुझे शारदा कुछ खरी खोटी सुना दे ,पर ऐसा नहीं हुआ | उसने मुझे बता ही दिया (या तो उसे अपने बोलने के अंदाज पर पछतावा था या फिर यह कि वो समझ चुकी थी कि मै किसी न किसी तरह से पूछ कर ही दम लूँगी )
वो हमारे साथ ही वस्ती में रहती है मैडम |एक छोटा सा दो साल का बेटा है उसका | पति पेंटर है और खुद पांच छ: घरों में काम करके पति से ज्यादा कमा लेती है | उसके बाद भी हर वक्त मिलती है तो पति से गाली |वो उसके काम और कमाई से संतुष्ट नहीं |दो-चार घरों में और कार्य करने को कहता है | कविता सारा दिन काम कर-कर के थक जाती है | इससे ज्यादा काम वो नहीं कर सकती | बस इसी बात को लेकर रोज उसका पति उसे पीटता है | कल रात को भी उसे बुरी तरह से पीटा और खुद शराब पीने ठेके पर चला गया | कविता ने हिम्मत दिखाई जिसके लिए पूरी बिरादरी ने उस पर थू-थू की | वो पुलिस के पास चली गई , अपनी सारी कहानी बताई | एक सिपाही घर पर आया तो एक शराब की बोतल और सौ रुपए देकर उसे भेज दिया |
गई तो थी न्याय लेने पर उसके बाद मिली उसे फिर से पति की मार और बदनामी | रात गई बात गई….सुबह उठ कर फिर से काम पर चली आई , पर है इंसान ही न | कल मरने की बात कर रही थी तो उसे समझाया कि छोटे बच्चे को पहले किसी को बेच दो या फिर अपने हाथों से मार दो फिर मर जाना |क्या कर पाओगी ऐसा |बस मैडम माँ की ममता जाग उठी |
आप ही बताओ मैडम कब तक वो सहेगी ?
और कितना काम करे वो ?
पति से ज्यादा कमाती है फिर भी उसे गालियां और मार ही क्यों मिलती है ?

औरत ही औरत की दुश्मन होती है…कब से यह सुनते आ रहे हैं | कई बार तो मै सोचने पर मजबूर हो जाती कि आखिर औरत को ही औरत की दुश्मन क्यों कहा जाता है | क्या वो मर्द औरत का दुश्मन नहीं जो अपने पुरुषत्व के चलते न जाने औरत पर कितने जुल्म ढाता है और फिर भी उसे जरा सा भी अहसास नही होता |

अब शारदा मुझसे प्रश्न कर रही थी और मै मूक सोचने पर मजबूर……..कि आखिर औरत किसकी दुश्मन है ?

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