मेरी आवाज़
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बातों से निकली बात बात बेगानी हो गयी
दबी थी जो मस्तक में , अब कहानी हो गयी
अनभव को जीकर छोड़ दो
हर गम से नाता तोड़ दो
बोला जो एक शब्द भी
तो नादानी हो गयी
तुम सहती हो बस सहती रहो
कुछ कहना हो खुद से कहती रहो
कह दी जो मन की बात
तो बदजुबानी हो गयी
न पार करो अपनी सीमा
मुश्किल हो जाएगा जीना
लांघा जो एक कदम तो
इज्जत पानी हो गयी
नारी का घूंघट उतरा
तो धमाल हो गयी
कह दी जो मन की बात
तो वो छिनाल हो गयी
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जो कहना हो खुलकर बोलो
जब चाहे जहां भी जो खोलो
कह दी जो अपनी बात
तो सोच विशाल हो गयी
जब पुरुष नें कह दी बात
तो बात कमाल हो गयी ,
जब नारी उसी पे बोली
तो वो छिनाल हो गयी ……….
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