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ये जो पब्लिक है ये सब जानती है…..जी हाँ जनता जनार्दन सब जानती है , लेकिन जब तक समझ आता है तब तक तो देर हो चुकी होती है और जिसका जो मकसद होता है पूरा हो चुका होता है ( मतलब कहने वाले का उल्लू सीधा हो चुका होता है ) ऐसा नहीं कि लोगों को समझ नहीं आ रहा होता लेकिन कुछ लोगों को इतनी महारत हासिल होती है कि अपनी बेतुकी सी बात को इस ढंग से कह जाते हैं कि लोग न चाहते हुए भी उस तरफ खिंचे चले जाते हैं ,बात का आधार कुछ भी नहीं , कोइ तथ्य नहीं और अपनी बात समझाने के लिए कोई उदाहरण भी नहीं या फिर समाज तक अपनी बात पहुंचाने के लिए कोई सच्ची या फिर काल्पनिक कहानी भी नहीं , बस एक बात ऐसी करो जिस पर विवाद खडा हो जाए और बिना किसी मेहनत के इतनी पब्लिसिटी मिल जाए कि एक पहचान बन जाए और अगर कोई नेगेटिव बात की जाए तो हंगामा इस कद्र कि आगे से नाम देखते ही पाठक क्लिक करने पर मजबूर हो जाए कि न जाने अब ऐसी क्या बात कही होगी ? इसका भले ही किसी को कोई फायदा या नुक्सान न हो किन्तु लिखने/कहने वाले को व्यूवर्स अवश्य मिल जाते हैं | काश ब्लॉग बनाने से पहले हमनें भी ये कला सीख ली होती |
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ऐसे लोगोंका अभिप्राय कुछ भी नहीं होता , सिवाय हलचल मचाने के और उद्देश्य होता है बिना मैदान-ए-जंग में उतरे युद्ध जीतना | अगर आपनें कुछ कहना ही है तो उसके लिए तर्क दीजिए | चौराहे पर खड़े होकर आप कुछ भी बोल दें और जनता उसे देव-वाणी समझ ज्यों का त्यों स्वीकार कर ले ऐसा कलियुग में तो कम से कम संभव नहीं | आप एक लेखक की हैसियत से अपनी बात रख रहे हैं तो केवल कहें नहीं बल्कि तर्क सहित कहिए ताकि आपकी बात किसी की आँखों के रास्ते दिल को छलनी कर आत्मा को निशाना बनाए और आपके तथ्य में कितनी सचाई है …..यह सोचने पर मजबूर हो जाएं |आपके ऐसा कह देने भर से कुछ भी नहीं होगा , दुनिया चल रही है और चलती रहेगी । जब तक आपका ब्लोग सामने दिखता रहेगा कोई उस पर चाहे/अनचाहे क्लिक कर लेगा बाद में कोई पूछेगा भी नहीं , हां अगर कुछ क्रिएटिव लिखा है तो कभी न कभी फ़िर भी किसी के काम आएगा ।
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सोचिए कि क्या कारण है कि आज भी हमारे महान साहित्यकार इतने सम्मानित क्यों होते हैं क्यों उनकी रचनाओं को सदियों से श्रद्धापूर्वक पढा जा रहा है ? तब तो कोई प्रचार/ प्रसार का साधन भी नहीं था फ़िर भी बच्चा बच्चा ऐसे महान लेखकों के बारे में जानता है ? जवाब स्पष्ट है कि उनकी लेखनी में कुछ न कुछ ऐसी बात है जो उन्हें महान से महानत्तम बनाती है । ऐसा नहीं कि उन्होंने कोई वाद-विवाद नहीं किया , किया लेकिन कुरीतियों का खण्डन करने के लिए न और वो भी स्वं उसका उदाहरण बनकर | अपना प्रचार करने के लिए विवाद नहीं खडा किया ।
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अगर कोई समाज विरोधी भाव आपके मन में उपजता है ( जो मैं समझती हूं एक सच्चे कलाकार का पहला गुण है )और आप खुद मानसिक रूप से उस विचार से सहमत है तो खुल कर बेबाक कहिए और तर्क सहित कहिए । मैं किसी के भी पक्ष/विपक्ष में नहीं हूं क्योंकि जानती हूं कि पिछले दिनों जो बेतुकी बात बहस का सबसे बडा मुद्दा बनी और जिस पर शायद ही जागरण का कोई ऐसा पाठक होगा जिसनें अपनी राय न व्यक्त हो ( सिवाय मेरे पर इमानदारी से कहुं तो पढा तो मैनें भी था —सभी पुरुष एक जैसे आखिर क्यों ? ) रात गई बात गई , सबनें अपनी अपनी भडास निकाल ली । आज फ़िर से जागरण पर एक ऐसा ही लेख इसके विपरीत पढने को मिला —क्या सभी नारियां एक जैसी होती हैं ? हम तो यही कहेंगे भैया कि पब्लिसिटी का कोई दूसरा मार्ग अपनाएं या फ़िर अपना रचनात्मक धर्म निभाएं । सभी पुरुष एक जैसे हैं या नहीं , या नारियां एक जैसी हैं या नहीं …….ये बेहुदा प्रश्न करके फ़ालतु के विवाद पैदा करके आखिर आप लोग साबित क्या करना चाह्ते हैं । मान लीजिए ये साबित हो भी जाए कि सभी पुरष एक जैसे नहीं होते या फ़िर सभी नारियां एक जैसी होती हैं ( साबित होना सम्भव ही नहीं फ़िर भी सोचने में क्या बुराई है ) तो कौन सा तीर मार लेंगे हम या कौन सी ऐसी विजय पताका फ़हरा लेंगे कि दुनिया में अमर हो जाएंगे और यह सब करके हासिल क्या होगा , किसके लिए हम ये साबित करना चाह्ते हैं । इसमें कुछ मिलेगा तो एक घटिया और निम्नस्तरीय सोच । जरा सोचिए क्या दे रहे हैं आप समाज को…? आपके पास कलम की ताकत है , उठाईए और बदल दीजिए उन कुरीतियों को जो भेद-भाव पैदा करें पर उससे पहले बदलिए अपने मन-मस्तिष्क को जिसमें ये निम्नस्तरीय विचार पनपते हैं ।
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