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चाँद पे होता घर जो मेरा

मेरी आवाज़
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आज की ये कविता है नन्हे-मुन्ने प्यारे-प्यारे बच्चों के लिए |

प्यारे बच्चो ,

आप यह तो जानते ही होंगे कि अब हमारी पहुँच चाँद तक हो चुकी है

वो दिन दूर नही जब हम अपने घर भी चाँद पर बनाएँगे और धरती पर

घूमने आएँगे ऐसा ही कुछ सपना मैने देखा था और उसे कविता रूप दिया

चलो आपको भी सुनाती हूँ वह प्यारा सा ,सुन्दर सा सपना आप यह कविता

केवल पढ ही नही बल्कि सुन भी सकते है कविता सुनने के लिए यहां
चाँद पे होता घर जो मेरा (Chaand Pe Hota Ghar Jo Mera) क्लिक कीजिए और सुनिए :-

चाँद पे होता घर जो मेरा

चाँद पे होता घर जो मेरा
रोज़ लगाती मैं दुनिया का फेरा
चंदा मामा के संग हँसती
आसमान में ख़ूब मचलती

ऊपर से धरती को देखती
तारों के संग रोज़ खेलती
देखती नभ में पक्षी उड़ते
सुंदर घन अंबर में उमड़ते

बादल से मैं पानी पीती
तारों के संग भोजन करती
टिमटिमाटे सुंदर तारे
लगते कितने प्यारे-प्यारे

कभी-कभी धरती पर आती
मीठे-मीठे फल ले जाती
चंदा मामा को भी खिलाती
अपने ऊपर मैं इतराती

जब अंबर में बादल छाते
उमड़-घुमड़ कर घिर-घिर आते
धरती पर जब वर्षा करते
उसे देखती हँसते-हँसते

मैं परियों सी सुंदर होती
हँसती रहती कभी न रोती
लाखों खिलौने मेरे सितारे
होते जो है नभ में सारे

धरती पर मैं जब भी आती
अपने खिलौने संग ले आती
नन्हे बच्चों को दे देती
कॉपी और पेन्सिल ले लेती

पढ़ती उनसे क ख ग
कर देती मामा को भी दंग
चंदा को भी मैं सिखलाती
आसमान में सबको पढ़ाती

बढ़ते कम होते मामा को
समझाती मैं रोज़ शाम को
बढ़ना कम होना नहीं अच्छा
रखो एक ही रूप हमेशा

धरती पर से लोग जो जाते
जो मुझसे वह मिलने आते
चाँद नगर की सैर कराती
उनको अपने घर ले जाती

ऊपर से दुनिया दिखला कर
चाँद नगर की सैर करा कर
पूछती दुनिया सुंदर क्यों है?
मेरा घर चंदा पर क्यों है?

धरती पर मैं क्यों नहीं रहती?
बच्चों के संग क्यों नहीं पढ़ती?
क्यों नहीं है इस पे बसेरा ?
चाँद पे होता घर जो मेरा?

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