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एक बार रक्षा–बंधन के त्योहार में,
बहन भाई से बोली बड़े प्यार में
मेरी रक्षा करना तुम्हारा फ़र्ज़ है
क्योंकि तुम पर इस
रेशम की डोरी का क़र्ज़ है
भाई भी मुस्कुरा कर बोला
बहन के सिर पर हाथ रख कर
तुम्हारी इज़्ज़त की रक्षा कारूँगा मैं
अपनी जान हथेली पर रखकर
यह सुना बहन ने तो बोली
थोड़ा सा सकुचा कर
यह इक्कीसवीं सदी का
जमाना है भाई
अपनी इज़्ज़त की रक्षा
तो मैं खुद कर सकती हूँ
मुझे तुम्हारी जान नहीँ
दौलत ही नज़राना है भाई
फिर अपनी इज़्ज़त चाहिए तो
कलर टी. वी मेरे घर पंहुचा देना
इस बार तो इतना ही काफ़ी है
फिर
स्कूटर तैयार रख लेना
वी.सी.डी. भी दो तो चलेगा
फिर मेरे रूम में
ए.सी. भी लगवाना पड़ेगा
अगर इतनी ही इज़्ज़त है प्यारी
तो मुझे फ्रिज भी देना
स्टोव नहीँ जलता मुझसे
इस लिए गैस–स्टोव भी देना
डाइनिंग टेबल, सोफा–सेट,अलमारी
वग़ैरह तो छोटा सामान है
वह तो खैर तुम दोगे ही
इसी में ही तुम्हारी शान है
रक्षा–बंधन में ही तो झलकता है
भाई बहन का प्यार
यह त्योहार भाई –बहन का
आता क्यों नहीँ वर्ष में चार बार……??????
भाई बोला कुछ मुँह लटका कर
यह है भाई–बहन के प्यार का उजाला
एक ही रक्षा–बंधन ने
मेरा निकाल दिया है दीवाला
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मैं कहती हूँ हाथ जोड़ कर
घायल न इसको कीजिए
भाई बहन के
पावन त्योहार को
पावन ही रहने दीजिए
पावन ही रहने दीजिए
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