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आज जिस खबर नें हमें चौंका दिया है – वो है बाल शोषण , दिल दहला देने वाली खबर जिसे सुनकर हर मां-बाप अपने बच्चे की सुरक्षा को
लेकर चिंतित होंगे | होना जायज भी है -आखिर बच्चे ईश्वर की सबसे ख़ूबसूरत रचना हैं और कोइ भी मां-बाप अपने बच्चे की ज़रा सी भी
पीड़ा सहन नहीं कर सकते | आखिर करें तो क्या करें – असुरक्षा के डर से बच्चों को घर पर तो नहीं बैठाया जा सकता और हर जगह मां-बाप
का साथ रहना किसी भी तरह संभव ही नहीं | आखिर ऐसी घटनाओं के लिए जिम्मेदार है कौन -क्या माता पिता , या स्कूल प्रशासन , या हमारा
समाज | ध्यान से सोचा जाए तो सबसे पहले इसके जिम्मेदार माता-पिता ही हैं , विशेषकर मां | एक मां होने के नाते बच्चे के साथ दोस्ताना
व्यवहार होना आवश्यक है , ऐसा व्यवहार की बच्चा कोइ भी बात बताते हुए झिझक न महसूस करे | माता-पिता को बच्चे पर विशवास होना
चाहिए और बच्चे की हर बात को ध्यान से सुनकर समझना चाहिए | जहां ऐसा नहीं होता -वहीं बच्चे घुटन महसूस करते हैं और मानसिक तौर
पर कमजोर होते जाते हैं | बच्चा जहां जा रहा है , वहां का वातावरण कैसा है , उसके दोस्त कौन हैं ये सारी जानकारी माता पिता को होना बहुत
जरूरी है और अगर माता-पिता बच्चे के दोस्तों से कभी-कभार हंस कर बात करलें और सम्बन्ध बनाकर रखें तो बहुत सी ऐसी बातें वो उनसे
भी जान जाएंगे जो उनका बच्चा बताते हुए शर्माता है या संकोच महसूस करता है | बच्चे अपने हैं – माता पिता को इसके लिए सावधान होना
ही होगा |
केवल मां बाप के जिम्मेदारी निभा देने से क्या बच्चे सुरक्षित होंगे – बहुत हद तक हाँ , पर पूरी तरह से नहीं | बच्चा ७-८ घंटे तक स्कूल में समय
बिताता है , जिसे उसके अध्यापकगण देखते हैं , उसके व्यवहार में बदलाव , आत्म-विश्वास में कमी —आदि ऐसी बहुत सी बातें हैं जिनसे एक
अध्यापक आसानी से बच्चे की मनोदशा को पहचान सकता है और जब माता पिता पूरे विश्वास के साथ बच्चे को स्कूल भेजते हैं तो स्कूल की
जिम्मेदारी बनती है की बच्चे की हर गतिविधि पर नज़र रखे और माता-पिता को उसके बारे में पूरी जानकारी भी दे |
एक चीज़ जो मैं समझती हूँ की हम भी ऐसे शोषण को रोकने में अपना सहयोग दे सकते है अगर हम जिम्मेदार नागरिक हैं तो |अगर हमें लगता
है कि किसी बच्चे के साथ कुछ अनुचित व्यवहार हो रहा है या फिर बच्चा कुछ ऐसा व्य्याहार करता है जो सामान्य नहीं है और माता- पिता या
अध्यापक उससे अनभिग्य हैं तो हमारी जिम्मेदारी बनती है कि हम माता-पिता या स्कूल प्रशासन को सूचित करें |
अगर हम सब जागरूक होंगे तो हमारे नन्हे-मुन्ने बच्चे सुरक्षित रहेंगे , उनका बचपन यूं ही खोएगा नहीं | बच्चों में आत्म-विश्वास जगाएं
आवाज़ उठाएं |
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