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नि:शब्द है
वो सुकून
जो मिलता है
माँ की गोदी में
सर रख कर सोने में
वो अश्रु
जो बहते है
माँ के सीने से
चिपक कर रोने में
वो भाव
जो बह जाते है अपने ही आप
वो शान्ति
जब होता है ममता से मिलाप
वो सुख
जो हर लेता है
सारी पीड़ा और उलझन
वो आनन्द
जिसमे स्वच्छ
हो जाता है मन ………………………………………….. …..
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माँ
रास्तों की दूरियाँ
फिर भी तुम हरदम पास
जब भी
मैं कभी हुई उदास
न जाने कैसे?
समझे तुमने मेरे जज्बात
करवाया
हर पल अपना अहसास
और
याद हर वो बात दिलाई
जब
मुझे दी थी घर से विदाई
तेरा
हर शब्द गूँजता है
कानों में संगीत बनकर
जब हुई
जरा सी भी दुविधा
दिया साथ तुमने मीत बनकर
दुनिया
तो बहुत देखी
पर तुम जैसा कोई न देखा
तुम
माँ हो मेरी
कितनी अच्छी मेरी भाग्य-रेखा
पर
तरस गई हूँ
तेरी
उँगलिओं के स्पर्श को
जो चलती थी मेरे बालों में
तेरा
वो चुम्बन
जो अकसर करती थी
तुम मेरे गालों पे
वो
स्वादिष्ट पकवान
जिसका स्वाद
नहीं पहचाना मैंने इतने सालों में
वो मीठी सी झिड़की
वो प्यारी सी लोरी
वो रूठना – मनाना
और कभी – कभी
तेरा सजा सुनाना
वो चेहरे पे झूठा गुस्सा
वो दूध का गिलास
जो लेकर आती तुम मेरे पास
मैने पिया कभी आँखें बन्द कर
कभी गिराया तेरी आँखें चुराकर
आज कोई नहीं पूछता ऐसे
?
तुम मुझे कभी प्यार से
कभी डाँट कर खिलाती थी जैसे
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