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बिन भाई जीना मजबूरी

मेरी आवाज़
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नमस्कार ,

आज जो मैं कविता रूप में लिख रही हूँ वो कोई सामान्य कविता नहीं बल्कि किसी की आपबीती सच्चाई है , रोंगटे खड़े कर देने वाली
सच्चाई जिसे मैं यहाँ लिख नहीं सकती लेकिन सुनकर सोचने पर मजबूर हूँ कि एक भाई के बिना वास्तव में लडकी कितनी मजबूर , लाचार
असहाय और सहनशील हो जाती है कि उसका अपना कोई अस्तित्त्व ही नहीं रहता | न चाहते हुए भी जुल्म सहती हुई मूक /बधिर बनकर जीने को मजबूर हो जाती है | जैसा कि मैनें पहले भी कहा कि किसी की आपबीती मैं यहाँ नहीं लिख सकती लेकिन बिन भाई के एक बहन के सीने की टीस को कुछ शब्द में अवश्य ब्यान करूंगी ………..

मैं कभी जुल्म न सहती
अगर मेरा एक भाई होता……..
हर जुल्म के सामने
मैं खड़ी हो जाती
जालिम के चहरे से
नकाब हटाती
अत्याचारी को
सजा भी दिलवाती
एक गाली के बदले
दिन में तारे दिखाती
अगर मेरा एक भाई होता……….
होठों पे झूठी हंसी का
ढोंग न करती
यूं हर पल घुट-घुट न मरती
जालिम से कभी
यूं न डरती
न ही कभी छुप-छुप कर
आंहें भरती
अगर मेरा एक भाई होता………..
अहंकारी का साथ निभाने को
यूं मजबूर न होती
अपनी प्रतिभा और इच्छाओं को
यूं न डुबोती
माँ-बाप सम्मुख खुश होने का
ढोंग न करती
गाली और मारपीट को
कभी यूं न जरती
अगर मेरा एक भाई होता……….
मैं भी जिन्दगी जीती
केवल आंसू ही न पीती
हर गम भुला देती
मैं भी नाम कमा लेती
मेरा अपना अस्तित्त्व होता
मेरे सीने में इतना दर्द न होता
जो मेरा भी एक भाई होता………………

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