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मानस की पीड़ा (भाग-17) – दुविधा में रावण

मेरी आवाज़
मेरी आवाज़
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मन उदास है सोच गहरी

दशमुख की दृष्टि कहीं ठहरी

अब जा कर अपने सोन महल

चेहरे पे उदासी, रहे टहल

क्यों बुद्धि मेरी गई मारी?

भूली क्यों मर्यादा सारी?

बस एक बात पे कुपित हो कर

क्यों ले आए सीता हर कर?

क्यों सोच-समझ अपनी खोई?

जब बहन आ के सम्मुख रोई

सोचा ही नहीं था क्या मसला?

बस मन में भर गया था बदला

कहाँ रहा रावण अब ज्ञानवान

दुष्कर्म तो करते हैं अनजान

सीता है जग-जननी माता

और मेरा है क्या उससे नाता?

यह भूल गया क्यों दश-आनन?

कर बैठा मर्यादा का हनन

राजा का करम नहीं मैंने किया

जनता को क्या संदेश दिया?

क्यों बुरा करम मैं कर बैठा?

माता सीता को हर बैठा

क्या करूँ? नहीं आ रहा मन में

बस चिंता है हर धड़कन में

कहाँ रखूं? सिया को नहीं जानता

छोड़ दूं ऐसे, मन भी नहीं मानता

मैंने ग़लत किया ,इसका दुख है

पर देखूं, जनता का क्या रुख़ है?

मैं ग़लत हूँ यह नहीं कह सकता

ऐसा संदेश नहीं दे सकता

कैसे दिखला दूं यह कमज़ोरी?

कि की है मैंने कोई चोरी

जनता क्या सोचेगी मुझपर?

इक राजा का होगा कैसा असर?

जनता को दुख न दिखाऊंगा

पछतावे में मर जाऊंगा

मुझे मौत की अपनी नहीं चिंता

पर क्या करेगी अब सीता?

मेरे कारण वह अनाथ हुई

हरा उसको, न छोटी बात हुई

अब राम के सम्मुख जाऊं कैसे?

राजा हूँ मैं झुक जाऊं कैसे?

नारायण राम हैं नहीं हर्ज़

पर मुझ पर है जनता का क़र्ज़

मैं क्या संदेश दूंगा जन को?

यही अच्छा है पक्का करूँ मन को

चाहता हूँ सिया को पहुंचा दूं

राघव से जा कर मिलवा दूं

क्या यह करना भी उचित होगा?

नहीं, राजा के लिए अनुचित होगा

अब सोच,सोच बस रही सोच

क्यों नहीं रहा तब मुझको होश?

जाति से तो हूँ मैं ब्राहमण

फिर हुआ क्यों मुझसे ऐसा कर्म?

कहाँ गई सारी विद्या मेरी?

दुर्भाग्य ने जब बुद्धि फेरी

जानता था राम तो हैं ईश्वर

वही हैं जानकी के सच्चे वर

फिर यह स्मरण मुझे क्यों न रहा?

और अपने कर्म से गिर ही गया

सोचते हुए बस गई बीत रात

नहीं इक पल को भी लगी आँख

नहीं चैन रहा उसके मन में

रही ज्वाला धधक जैसे तन में

इक पल को तो यह ठान लिया

रावण ने भी यह मान लिया

मैं सीता को छोड़ के आऊंगा

रघुवर सम्मुख झुक जाऊंगा

दूजे ही पल यह विचार करें

अब थोड़ा सा इंतज़ार करे

जो होना था वह हो ही गया

और सोचों में फिर खो ही गया

क्या राम क्षमा देगा मुझको?

और क्या अपनाएगा सिया को?

राजा होकर झुक जाऊंगा

क्या खुद को क्षमा कर पाऊंगा?

राम क्षमा मुझे कर भी दें

तो मैं कायर कहलाऊंगा

कायर राजा बन करके क्या?

मैं सच में राज्य कर पाऊंगा?

मैंने नारी से किया धोखा

क्यों पहले मैंने नहीं सोचा?

अब नारी ही पार लगाएगी

वह ही कोई मार्ग बताएगी

यह सोच औ मन में ले विश्वास

आ गया रावण पत्नी के पास

अपनी दुविधा को बता ही दिया

और दिल का हाल सुना ही दिया

सुन कर मंदोदरी हुई प्रसन्न

और खुश हो गई वह मन ही मन

रावण ने ग़लती मान ही ली

मंदोदरी ने भी ठान ही ली

वह पति का साथ निभाएगी,

नहीं उसको कहीं झुकाएगी

ग़लती का तो रावण को मिले दंड

पर टूटे न इक राजा का घमंड

राजा का घमंड जो टूटेगा

फिर उसको हर कोई लूटेगा

नहीं टूटेगा राजा का मान

चाहे चली जाए उसकी जान

साधारण नहीं है रावण नर

जनता का बोझ भी कंधों पर

इक राजा ही तो उठाता है

पूरे राज्य को चलाता है

पर राम जब भी यहाँ आएगा

निश्चय ही युद्ध मच जाएगा

तबाही युद्ध से मच जाएगी

सोने की लंका जल जाएगी

वह रही सोच मन ही मन में

नारायण हैं हर धड़कन में

जानती है राम हैं नारायण

और दोषी उसका पति रावण

वह राम से कभी न जीतेगा

निश्चय रावण का वध होगा

और वह विधवा हो जाएगी

फिर क्या जीवन जी पाएगी?

कुछ भी हो अब पीछे हटना

नहीं होगी यह छोटी घटना

इक राजा को मैं बचाऊं कैसे?

नारी पे ज़ुल्म सह जाऊं कैसे?

फिर राम तो नारायण है स्वयं

रावण ने किया है बुरा कर्म

फिर भी उसका अच्छा भाग्य

क्या करना है उसको राज्य?

जी कर भी तो पाप कमाएगा

फिर वही नर्क में जाएगा

और राम के हाथों मरेगा तो

भाव-सागर से तर जाएगा

रावण के लिए अवसर अच्छा

बेशक नहीं वह इन्सां सच्चा

अब पीछे हट गया जो रावण

और चला गया जो राम-शरण

प्रजा भी न उसे मानेंगी

कायर रावण को जानेगी

राजा का रहेगा कैसा मान?

जो नहीं होगा उसका सम्मान

अच्छा है राम के हाथों मरे

और खुशी से भाव-सागर से तरे

हार के जीतेगा रावण

जो राम के हाथों होगा मरण

रावण के जिंदा रहते हुए

नहीं लंका राम आ पाएगा

पर राम तो धरती पर होगा

रावण उसके घर जाएगा

यही अच्छा है मन में ठान लिया

और भला-बुरा पहचान लिया

रावण का तो हित हो जाएगा

पर कत्ले आम हो जाएगा

कैसी चिंता? हरि के रहते

हम कुछ भी तो स्वयं नहीं करते

यही इच्छा ईश्वर की है

और चिंता भी रघुवर की है

जो होगा वह अच्छा होगा

और युद्ध भी तो सच्चा होगा

यह एक इतिहास बन जाएगा

राम, रावण से जुड़ जाएगा

मंदोदरी ने समझा ही दिया

और रावण को बतला ही दिया

अब पीछे तुम्हें नहीं हटना है

और युद्ध भूमि में डटना है

बाकी चिंता छोड़ो उस पर

वही दिखलाएगा तुम्हें डगर

जी कर तो कुछ न पाओगे

मर कर के अमर हो जाओगे

अब तो रावण ने ठान लिया

कहना पत्नी का मान लिया

तैयार हुआ लड़ने को युद्ध

कर दिया पत्नी ने मन को शुद्ध

अब नहीं है मन में कोई दुविधा

युद्ध लड़ने में हो गई सुविधा

अब तो वह युद्ध में जाएगा

और भव-सागर तर जाएगा

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