“महानगर की होली-holi contest “
होली आई होली आई
मुन्ने की नजरें ललचाई
देख पिचकारी और गुलाल
पाया जा घर में धमाल
ले दो मुझको भी गुलाल
करूँगा रंगों से कमाल
माँ ने ला दी एक पिचकारी
पानी ही से भर दी सारी
साथ में दी दी चेतावनी
देखो वेस्ट न करना पानी
साठ रुपये का लीटर बीस
पानी के दाम से निकले चीस
कई बार तो मारे प्यास
पिलाएँ उसे जो आएँ खास
बाथ का पानी अलग मँगवाएँ
दस ही दिन में सम्ब भरवाएँ
एक माह में टैंकर तीन
बरतें पानी ज्यों कोई दीन
देखो जो तुम रंग डारोगे
खुद को और घर गंदा करोगे
रंगों में पानी डालोगे
फिर दीवाल को रंग डालोगे
नष्ट करोगे नहाकर पानी
बिगड़ेगी अपनी बजट कहानी
पेंट के पैसे भरने पडेंगे
मालिक के ताने भी मिलेंगे
दिखाओ तुम भी इमानदारी
पानी की एक ही पिचकारी
समझ लो तुम इसी को रंग
नहीं खेलना दोस्तों के संग
यह है महा-नगर मेरे लाल
उड़ते नहीं हैं यहां गुलाल
कौन कहां और किसकी होली
पैसे की यहां लगती बोली
तुम भी यह समझ जाओगे
रंग न फिर कोई लाओगे
नहीं किसी का कोई हमजोली
यह है महा-नगर की होली
आप इसे कविता/ अकविता , लेख/आलेख , कहानी कुछ भी कह सकते हैं| लेकिन मेरे लिए यह महा-नगरीय जीवन की कड़वी सच्चाई है |
-सीमा सचदेव
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