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आतंकवाद और आतंकवादी की माँ

मेरी आवाज़
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“आतंकवाद और आतंकवादी की माँ ” यह कविता मैनें मुम्बई हमले के दौरान लिखी थी | आज विनीता जी की कविता ” आतंकवादी का दर्द ” पढ़कर फिर से इसकी याद ताज़ा हो आई और यहाँ पोस्ट कर रही हूँ ——–

चाँद सा सुत जन्मा
माँ खुश
गोदी मे लाल की किलकारी
लगी बडी प्यारी
दिख गए सूनी आँखों मे
न जाने कितने ही सपने
बडा होगा तो
सहारा बन जाएगा
उसकी सौतन भूख को भगाएगा
मेरा नाम भी चमकाएगा
पर सौतन थी कि
बदले की आग मे भडकी थी
उसने भी अपनी जिद्द पकडी थी
सौतेली ही सही
मै इसकी माँ कहलाऊँगी
और दुनिया को दिखाऊँगी
इसकी माँ के साथ मेरा नाम भी आएगा
सौतेला ही सही
मेरा सुत भी कहलाएगा
मेरे लिए यह खून पिएगा
दूसरों को मार के जिएगा
माँ का दूध नहीं इसके सर
खून चढ के बोलेगा
खुद रुलेगा दूसरों को रोलेगा
जननी की लाचारी थी
सौतन जो अत्याचारी थी
चाह कर न बचा पाई अपना ही जाया
सौतेली माँ ने ऐसा भरमाया
हाथ मे हथियार थमा दिया
और सौतेले सुत को
आतंकवादी बना दिया
खुद आतंकवाद की माँ बन बैठी
न जाने कितनी ही लाशें
उसके सम्मुख लेटीं
सौतेले सुत ने नाम चमका दिया
स्वंय को आतंकवादी बना दिया
जननी का कर्ज़ ऐसा चुकाया कि
उसकी कोख पर कलंक लगा दिया
सौतेली माँ को जिता दिया
और अपनी माँ को
आतंकवादी की माँ बना दिया

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