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क्या बाल-रचनाओं को अनदेखा करना उचित है ?

मेरी आवाज़
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नमस्कार दोस्तो ,

              अत्यंत व्यस्तता के चलते आजकल मैं लेखन कार्य के लिए कम ही समय निकाल पाती हूं । शायद औरत इसी का नाम है कि हम अपनी जिम्मेदारियों को निभाते-निभाते यह भोल ही जाते हैं कि हमारा अपना अस्तित्त्व क्या है और हम चाहती क्या हैं । खैर यह तो ऐसी बहस है जिसका न कोई अंत है और न ही कोई हल । फ़िर आपका और अपना समय कीमती समय बर्बाद करने की गुस्ताखी मैं बिल्कुल भी नहीं करुंगी । आज इस मंच के माध्यम से मैं अपनी बात रखना चाहती हूं जो मैं समझती हूं कि मेरा कानूनन जन्म सिद्ध अधिकार है । हुआ यह कि – आज जब मैंने अपना मेल बाक्स खोला तो एक हिन्दयुग्म परिवार की तरफ़ से शैलेष जी का मेल देखकर मैं चौंक गई और ऐसा होना स्वाभाविक भी था । मेरी जगह कोई भी होता तो शायद वह भी चौंक जाता । मेल एक बार फ़िर पढा और फ़िर साथ में भेजे गए लिंक को खोल कर देखा तो वास्तव में वह सच था जिसकी मैनें कभी कल्पना भी नहीं की थी । वास्तव में मेरा नाम भारत की उन १११ हिन्दी लेखिकाओं की सूची में था जिनको बतौर ’द संडे इन्डियन ’ पत्रिका के अनुसार चार माह की कडी मेहनत के बाद सैंकडों नामचीन लेखिकाओं की सूची में से लिया गया । न जाने हमारी लेखनी में ऐसा क्या खास था कि हमारा नाम उस विशेष सूची में शामिल किया गया और यह समझ भी आया कि अंतरजाल कितना लाभकारी है – हम सब के लिए ।

ऐसी विशेष सूची में अपना नाम पाकर मेरी प्रतिक्रिया भी वैसी ही थी , जो किसी की भी हो सकती है , यह तो एक मनो-वैग्यानिक सत्य है , लेकिन पढकर थोडी सी निराशा भी हुई कि मेरा नाम केवल भक्ति-रस की कविताओं के साथ जोड दिया गया जबकि अंतरजाल की दुनिया में मुझे बाल-साहित्यकार के रूप में ज्यादा पहचाना जाता है । मेरे द्वारा सामाजिक लेख और कथाएं भी लिखी गईं जिनका कुछ नमूना जागरण मंच पर मेरे ब्लाग के रूप में उपलब्ध है । मुझे खुशी है कि मेरी भक्ति रस की रचनाओं को इतना महत्त्व दिया गया लेकिन मेरे द्वारा रचे गए बाल-साहित्य की तरफ़ किसी का ध्यान नहीं गया जो कि मेरे ब्लाग ” नन्हामन” और हिन्दयुग्म पर “बाल उद्यान’ में उपलब्ध है । मैं बिल्कुल भी नहीं समझ पाई कि ’बाल-उद्यान ’ जैसी सर्वश्रेष्ठ बाल-पत्रिका में मेरे  योगदान की तरफ़ किसी का ध्यान क्यों नहीं गया । मुझे बहुत खुशी होती अगर मेरे ’बाल-साहित्य ’ को भी उतनी ही गहराई से समझा जाता जितना मेरी भक्ति रस की रचनाओं को समझा गया । यहां पर मुझे जितने भी माननीय लेखकगण और पाठकगण जानते हैं – मैं अवश्य उनके विचार जानना चाहुंगी कि क्या-मेरी बाल-रचनाओं को अनदेखा करना उचित है । dekhiye link :-

 

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