- 107 Posts
- 718 Comments
छुअन
छुअन
माँ बार-बार देखती थी छूकर
जब भी कभी जरा सा गर्म होता
मेरा माथा
चिढ जाती थी मै माँ की
ऐसी हरकत पर
गुस्सा भी करती
पर माँ
टिकती ही न थी
बार-बार छूने से
गुस्से और चिड-चिडाहट की
प्रवाह न करती
तब तक न हटती
जब तक मेरे मस्तक को
ठण्डक न पहुँच जाती
न जाने बार-बार छुअन से
क्या तस्सली मिलती उसे
उस छुअन का तब
कोई मूल्य न था
और
उस अमूल्य छुअन को
महसूस करती हूँ अब
जब तन क्या मन भी जलता है
मिलता है केवल
व्यवहारिक शब्दोँ का सम्बल
बहुत कुछ दिलो-दिमाग को
छू जाता है
महसूस होती है अब भी
कोई छुअन
जो देती है केवल चुभन
और भर जाती है
अन्तर्मन तक टीस
छेड जाती है आत्मा के सब तार
और वो कम्पन
जला जाता है सब कुछ
बिजली के झटके की भान्ति
अन्दर ही अन्दर
किसी को बाहर
खबर तक नही होती
तभी माँ की वो बचपन की छुअन
पहुँचा जाती है ठण्डक
और करवा देती है
जिम्मेदारियोँ का अहसास
कि आज जरूरत है किसी को
मेरी छुअन की
******************************************************
Read Comments