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सत्यमेव जयते – कितना सत्य ???? – jagran junction forum

मेरी आवाज़
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सत्य की सदा विजय , आखिर में सत्य की जीत , सत्य सदैव सत्य रहता है , यह तो हम हिन्दुस्तानियों को जन्म घुट्टी के साथ घोल कर पिलाया जाने वाला ऐसा पेय है , जिसे हमें होश संभलने से पहले ही पिला दिया जाता है । हमारे बच्चे कुछ और सीखें या न सीखें सच और झूट में अंतर अवश्य समझ जाते हैं । सच बोलने से क्या अच्छा होता है और झूट बोलने का परिणाम सदैव बुरा ही होता है , यह एक विवादित विषय है । न्यायालय में भी सत्य बोलने की शपथ दिलाई जाती है और शपथ खाकर बोली गई बात को कितना सत्य या कितना झूटा करार दिया जाता है , यह भी आज हर बच्चा बच्चा जानता है । सो सत्य क्या है या झूट क्या है क्या इसमें अपनी-अपनी विचारधारा हो सकती है । मैं तो इतना जानती हूं कि आज के युग में वही सत्य है जो दिखाई देता है , भले ही वह झूट सौ सत्यों को दबाकर बोला गया हो, जिसको हम पर्दे के पीछे छुपाकर रखते हैं वह झूट है ( यह मेरे निजी विचार नहीं हैं बल्कि आज की सच्चाई है ) सो बात छुपाने से अच्छा है उस पर नमक-मिर्च लगाकर पेश कर दिया जाए । यकीन मानिए फ़िर चर्चा का ऐसा दौर चलेगा कि सच क्या है और झूट क्या , स्वयं को ही भूल जाएगा । झूट और सत्य के सम्भोग से ऐसी-ऐसी बातें/ विवाद जन्म लेंगे कि झूट और सत्य की वास्तविक्ता गुमनामी में खो जाएगी , हमारा लक्ष्य भी तो यही था , हमने भडास निकाल भी दी और ध्यान कहीं ओर भटका कर सच/ झूट की सीमाओं से भी मुक्त हो गए । असली बात कोई पूछेगा भी नहीं |
खैर , मेरा मकसद सत्य और झूट को परिभाषित करना बिल्कुल भी नहीं । मैं तो बस ’सत्यमेव जयते ’ में दिखाए जाने वाले सत्य में छिपे सत्य को तलाशने का असफ़ल प्रयास कर रही हूं । प्रथम एपीसोड की चर्चा मैने बहुत सुनी ” भ्रूण हत्या ” पर किन्तु देख नहीं पाई थी । कल बाल यौन शोषण पर चर्चा देखी । यह एक नाजुक विषय है जिसमें अबोध / मासूम बच्चे न जाने किन किन ताडनाओं का शिकार होते हैं कि सुनकर किसी के भी रोंगटे खडे हो जाएं । बहुत पीडा होती है जब कोई ऐसी घटना सुनते हैं । कल एक नवयुवक को अपनी बचपन की त्रासदी सुनाते हुए देखा , सोचने पर मजबूर हूं कि
(१) क्या वास्तव में ऐसा भी हो सकता है ?
(२) साढे छ: साल का बच्चा कम्पयूटर में माहिर हो सकता है लेकिन अपने कपडे धोने या बदलने में माहिर नहीं हो सकते ।
(३) एक बच्चा ( साढे छ: साल का ) जो बलात्कार का शिकार हुआ हो , क्या वह नासमझ मासूम सबकुछ सहन करके एकदम सामान्य होगा ?
(४) क्या एक बच्चे की सहन शक्ति इतनी होती है कि असहनीय पीडा को प्रक्ट न कर पाए ?
(५) क्या एक मां को अपने बेटे के कपडों में लगे हुए खून के धब्बे दिखाई न दिए होंगे ? और अगर देखा होगा तो वह मां जो बच्चे की उंगली में भी मामूली सा घाव देखकर भी कराह उठती है , उसके मन में कोई डर या आशंका उत्पन्न नहीं होगी , अगर नहीं तो मुझे दुख हो रहा है कहते हुए कि ऐसी औरत को मां होने का ही अधिकार नहीं है ।
(६) घर में एक बच्चे से शुरु होकर कर एक युवक के साथ ग्यारह साल तक कुकर्म होता रहा और किसी को पता तक न चला …..??
( ७) एक और बात जिसे मैने महसूस किया कि उस युवक की बात कहने का ढंग कुछ बनावटी सा लगा । न तो उसके चेहरे पर कोई हाव-भाव थे और न ही उसकी आवाज़ में कोई पीडा ।
इसमें कितना सत्य है , मैं नहीं समझ पाई , आपके विचारों की प्रतीक्षा रहेगी …………….

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