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जाके सर पर सोहे ताज , नहीं किसी का वो मोहताज़ – contest

मेरी आवाज़
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हिंदी दिवस पर ‘पखवारा’ के आयोजन का कोई औचित्य है या बस यूं ही चलता रहेगा यह सिलसिला?

हिन्दी की बिन्दी को
मस्तक पे सजा के रखना है
सर आँखो पे बिठाएँगे
यह भारत माँ का गहना है ।

जी हाँ हिन्दी भारत माँ के देदीप्यमान ललाट पर चमक्ता वह सितारा है , जो हिन्दी साहित्याकाश में अपनी चमक चहुँ ओर बिखेरता हुआ विद्यमान है । हिन्दी आज विश्व की जानी-मानी भाषाओं में अपना उच्च स्थान रखती है और किसी परिचय की मोहताज़ नहीं है । आज यह अपना परचम भारत की जमीं से से निकल विदेशों में फ़ैला चुकी है और गर्व है कि हम हिन्दी रूपी उस नैका के नाविक हैं जिसे आज विदेशी भी सीखने को लालायित रहते हैं । हिन्दी वैज्ञानिक भाषा है , इसमें कोई दो राय नहीं हैं ।इसलिए

आओ हम हिन्दी अपनाएँ
गैरों को परिचय करवाएँ
हिन्दी वैज्ञानिक भाषा है
यह बात सभी को समझाएँ

इसका हृदय ऐसा विशाल सागर है कि हर किसी को अपने आँचल की छाया प्रदान करने में समर्थ है । फ़िर हम तो जन्म से इसके ममतामयी आँचल की छाया में पले-बढे है

हिन्दी हमारा इमान है
हिन्दी हमारी पहचान है
हिन्दी हैं हम वतन हमारा
प्यारा हिन्दुस्तान है

जब हिन्दी इतनी महान है और उसके सर पर महानता का ताज़ है तो भला फ़िर यह किसी दिवस या पखवाडे की मोहताज़ कैसे हो सकती है । यह तो बिना रुके सरिता से प्रवाह की भान्ति निरंतर प्रगति के पथ पर अग्रसर है जो अपने पथ स्वयं बनाती है ।

हिन्दी ही हिन्द का नारा है
प्रवाहित हिन्दी धारा है
लाखों बाधाएँ हो फिर भी
नहीं रुकना काम हमारा है

हम भारतीयों का यह नैतिक धर्म बनता है कि हम इसके रास्ते में आई रुकावटों को दूर कर ऊँचाई के उस शिखर तक पहुँचाएँ , जहां सूर्य और चाँद का अंतिम छोर हो

हिन्दी को आगे बढ़ाना है
उन्नति की राह ले जाना है
केवल इक दिन ही नहीं हमने
नित हिन्दी दिवस मनाना है ।

हमें केवल एक दिन या पखवाडा मनाकर ही औपचारिकता पूरी नहीं करनी है । हिन्दी किसी विशेष दिन की मोहताज़ नहीं है । हिन्दी हमारी अपनी भाषा है और अपनी भाषा के बिना न तो हमारी उन्नति संभव है और न है और न ही सद-व्यवहार कर सकते हैं ।
निज भाषा का ज्ञान ही
उन्नति का आधार है
बिन निज भाषा ज्ञान के
नहीं होता सद-व्यवहार है

जब हम हर रोज , हर पल अपनी भाषा के साथ जुडे हैं तो एक विशेष दिन सूर्य को दीपक दिखाने जैसा है । जरूरत एक दिन औपचारिकता निभाने की नहीं है , जरूरत है हमारे राष्ट्र की पहचान हिन्दी भाषा को सम्मान देने की ।

राष्ट्र की पहचान है जो
भाषाओं में महान है जो
जो सरल सहज समझी जाए
उस हिन्दी को सम्मान दो ।

आज हर भारतीय का फ़र्ज़ है कि अपनी भाषा की पहचान दुनिया के हर कोने में कराएँ । उसके लिए हमें खोखली बातों की नहीं बल्कि व्यवहारिक रूप से अपनी भाषा के अपनाने की आवश्यकता है ।

हम हिन्दी ही अपनाएँगे
इसको ऊँचा ले जाएँगे
हिन्दी भारत की भाषा है
हम दुनिया को दिखाएँगे ।

हम कहीं भी क्यों न पहुँच जाएँ , अपनी भाषा हमारी मूल पहचान है । इसके बिना हमारी पहचान सम्भव ही नहीं ।

नहीं छोड़ो अपना मूल कभी
होगी अपनी भी उन्नति तभी
सच्च में ज्ञानी कहलाओगे
अपनाओगे निज भाषा जभी

खूब प्रयोग करें हिन्दी भाषा का, न प्रयोग होने वाली भाषाएँ मर जाती हैं।
संकल्प लें की अपनी भाषा को जीवित रखेंगे।

बढ़े चलो हिन्दी की डगर
हो अकेले फिर भी मगर
मार्ग की काँटे भी देखना
फूल बन जाएँगे पथ पर

आखिर में मैं यही कहना चाहुँगी कि हिन्दी हिन्दुस्तान की पहचान है । इसी के कारण ही तो हमारा देश विश्व में महान है और इस भाषा की उन्नति के लिए हमें समर्पित होना चाहिए –

हिन्दी से हिन्दुस्तान है
तभी तो यह देश महान है
निज भाषा की उन्नति के लिए
अपना सब कुछ कुर्बान है

हिन्दी तो भारत में महारानी के पद पर विराजमान है , वह किसी पखवाडॆ की मोहताज़ नहीं । फ़िर भी भारतीय होने के नाते और हिन्दी भाषी होने के नाते हमारा नैतिक धर्म है कि हम अपनी भाषा का सम्मान करें ।

जै हिन्द जै हिन्दी

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