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एक खुली चिट्ठी-पी.एम. की (कविता )

मेरी आवाज़
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एक खुली चिट्ठी लिखने को , मन मेरा ललचाया है ।
सच जानो मेरे ख्याल में , बस पी. एम. ही आया है ।
हम भी बडे लोग हैं यारो , छोटी सोच नहीं रखते ।
पी.एम से कम हम भी किसी की , चिट्ठी खुली नहीं लिखते ।

अच्छा छोडो ये बातें , इससे न हमें कुछ लेना है ।
अपना काम तो बस कहकर , कुछ सन्देसा ही देना है ।
कितनी सुनोगे बकबक मेरी , अब मुद्दे पर आती हूँ ।
अपने पी.एम. के मन के , भावों को आज बहाती हूँ ।

धैर्य धरो और शान्त रहो , जो कहना है वो कहते रहो ।
हँसी ठिठोली में अपने , कटु वचन धार में बहते रहो ।
श्रोता का क्या , वह तो हँसकर , अपने मन को बहला लेगा ।
मजबूरी के जख्मों को , बस शब्दों से सहला लेगा ।

स्व हित की खातिर सपने , लोगों को खूब दिखाओ तुम ।
वक्तव्य से अपने सबकी , आँखों में छा जाओ तुम ।
औरों का नहीं तो अपना सपना , तो पूरा कर पाओगे ।
पर सपनों की उडान पे ही , दुनिया में घूम के आओगे ।

टूट गया तो टूट गया , वो कौन सा अपना सपना है ।
रोता है कोई तो रोता रहे , वो कौन सा मेरा अपना है ।
मेरा तो बस इक वोट ही था , जिसको मैने हथियाना था ।
साम, दाम और दंड , भेद से , किसी तरह पाना ही था ।

अपने मिशन में सफ़ल हुआ , लोगों की बात वही जानें ।
यह मेरा बुद्धि बल है , जो लोग बात मेरी माने ।
जीत लिए जो दिल मैनें , अब टूट गए परवाह नहीं ।
पाँच साल की अवधि तक तो , और कोई भी राह नहीं ।

ऐसे नहीं मैं पी.एम. की , कुर्सी को बस हथिआया हूँ ।
भरी सभा में भाषण से , लोगों को खूब हँसाया हूँ ।
आसान नहीं लोगों के चेहरे , पर मुस्कान खिला देना ।
उम्मीदों के महलों को बस , बातों ही से बना देना ।

दुनिया के हर कोने में , अपनी आवाज़ सुनानी थी ।
घूम के आना हर कोना , ये इच्छा बहुत पुरानी थी ।
लडा खूब हालातों से , पर मेहनत काम नहीं आई ।
थक हार के बोली मुझसे , इक दिन मेरी परछाई ।

ऐसे ही लडते रहोगे तुम , तो लड लड के रह जाओगे ।
मंजिल तभी मिलेगी जब तुम , लोगों को बहकाओगे ।
लडना है तो लडो मगर , सत्य का दामन छोडकर ।
रखो स्वयं की बात मगर , दूसरों की बात मरोडकर ।

राज सफ़लता का कितना , आसान है मैने जान लिया ।
भारत का पी.एम. बनने का , मन ही मन में ठान लिया ।
हर मार्ग अपनाया मैनें , मंजिल तक जाने हेतु ।
बना लिया फ़िर मैनें , झूठे सपनों का सुंदर सेतु ।

हवा महल दिखलाकर मैनें , सुंदर सपने संजो दिए ।
पाने की उत्सुक आँखों के , भाव वाक में पिरो दिए ।
बोला मैनें वही वचन , जो जनता के मन भा जाए ।
ऐसे शब्द-वाण छोडे जो , दिल दिमाग पर छा जाए ।

सफ़लता ने स्व आकर , मेरे कदमों को चूम लिया ।
एक वर्ष की अवधि में , मैं पूरी दुनिया घूम लिया ।
पी.एम. बनकर जीवन में , मेरे सपने साकार हुए ।
भले ही इसकी खातिर , जन के सपने बेकार हुए ।

बस मुझको पी.एम. बनना था , बनकर ही दिखलाया है
जन के सपने कुचल के मैने , अपना महल बनाया है ।
जो चाहा मैने पाया , कोई रोए मुझको क्या करना ।
मैने तो हर हाल मे पूरा , करना था मेरा सपना ।

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